उसकी ख़ामोशियाँ अब भी बोलती हैं

कुछ रिश्ते बेशक ख़त्म हो जाते हैं, मगर दिल की ज़ुबान पर उम्रभर उनका नाम रहता है। छः बरस… जैसे कोई सिलसिलेवार कविता, हर पंक्ति में वो थीं, हर अर्थ में सिर्फ़ वो। उसका साथ वैसा ही था जैसे तपते रेगिस्तान में कोई छांव या किसी उलझे विचार में सहजता की धीमी सी मुस्कान।

उसने रिश्ता निभाया एक पूजा की तरह, जिसमें आस्था भी थी, अर्पण भी और समर्पण भी। वो हर बार नाराज़ होतीं, मगर लौट भी वहीं आती जैसे कोई नदी भले ही राह बदल ले, पर अंततः सागर में ही समा जाती है। मैंने शायद बहुत कुछ कहा पर उसकी ख़ामोशियाँ ज़्यादा बोलती थीं। मैंने चाहा… मगर उसने निभाया। मैंने प्रेम किया और उसने प्रेम जी लिया।

वो वक़्त की उस किताब की सबसे प्यारी कहानी थीं जिसे मैंने कई बार पढ़ा, पर कभी पूरी तरह समझ नहीं पाया। अब जब वो साथ नहीं है, तब भी मेरे पास उससे शिकवा करने के लिए कुछ नहीं है, कहने के लिए कुछ नहीं है। मै बस उसका शुक्रिया अदा करता हूँ, उसकी मोहब्बत का, उसके समर्पण का, जिसे उसने बिना किसी शर्त, बिना किसी स्वार्थ के निभाया।

उसका होना मेरे जीवन का सबसे कोमल अध्याय था, जिसकी हर याद अब गुलाब की तरह महकेगी थोड़ी सी चुभन के साथ, मगर बेहद खूबसूरत। वो जहाँ भी रहे मुस्कुराती रहे खुश रहे। वो अब मेरी नहीं है, पर रहेगी हमेशा मेरी दुआओं में, मेरे दिल मे क्योंकि कुछ मोहब्बतें मुकम्मल ना होकर भी अमर हो जाती हैं।

-fb

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